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रक्त में ऑक्सीजन स्तर — सम्पूर्ण मार्गदर्शिका

Oct 10, 2025
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रक्त में ऑक्सीजन का स्तर यह दर्शाता है कि शरीर किस प्रकार से ऊतकों और अंगों तक ऑक्सीजन पहुँचा रहा है। अक्सर नॉन-इनवेसिव विधियों जैसे पल्स ऑक्सीमीट्री के माध्यम से इसका आकलन किया जाता है। यह श्वास तथा हृदय-विकारों का मूल्यांकन करने में अत्यंत महत्वपूर्ण संकेत है। 

ऑक्सीजन कोशिकीय कार्य के लिए अनिवार्य है। पर्याप्त ऑक्सीजन न होने पर मस्तिष्क और हृदय जैसे अंग ठीक से कार्य नहीं कर पाते। ऑक्सीजन सैचुरेशन की निगरानी से सामान्य स्वास्थ्य की जानकारी मिलती है और संभावित गंभीर स्थिति का शीघ्र पता लग सकता है। 

इस ब्लॉग में हम समझेंगे — रक्त में ऑक्सीजन स्तर का अर्थ क्या है, इसे कैसे मापा जाता है, आयु के अनुसार सामान्य सीमा, निम्न ऑक्सीजन स्तर का चिकित्सीय महत्व, संभावित कारण और साक्ष्य-आधारित उपचार। 

रक्त में ऑक्सीजन स्तर का क्या अर्थ है? 

रक्त में ऑक्सीजन स्तर बताता है कि रक्त में कितनी मात्रा में ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन (RBC के प्रोटीन भाग) से जुड़ी हुई है और शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुँच रही है। ऑक्सीजन का प्रतिशत स्वरूप में व्यक्त किया जाता है जिसे ऑक्सीजन सैचुरेशन (SpO₂) कहते हैं - यह बताता है कि कुल हीमोग्लोबिन क्षमता में से कितना प्रतिशत ऑक्सीजन बाँधा हुआ है। अधिकांश स्वस्थ व्यक्तियों में यह मान 95% से 100% के बीच होता है। 90% से कम मान सामान्यतः कम (हाइपोक्सीमिया) माने जाते हैं और चिकित्सीय मूल्यांकन की आवश्यकता हो सकती है। 

रक्त में ऑक्सीजन स्तर की जाँच क्या है? 

रक्त में ऑक्सीजन स्तर मापना क्लिनिक में एक सामान्य प्रक्रिया है। सबसे अधिक उपयोग होने वाली विधियाँ हैं — पल्स ऑक्सीमीट्री (नॉन-इनवेसिव) और आर्टीरियल ब्लड गैस (ABG) परीक्षण। 

पल्स ऑक्सीमीट्री (SpO₂) 

पल्स ऑक्सीमीटर उंगलियों पर लगाए जाने वाला एक छोटा उपकरण है जो प्रकाश की किरणों के माध्यम से ऑक्सीजन सैचुरेशन का अनुमान लगाता है। यह दर्दरहित, त्वरित और नॉन-इनवेसिव तरीका है। परंतु इसकी माप पर नेल पॉलिश, खराब परिसंचरण या त्वचा के रंग का प्रभाव पड़ सकता है। यह उपकरण पल्स-रेट (हृदय की धड़कन) भी एक साथ नापता है क्योंकि यह पल्सिलेटाइल ब्लड फ्लो पर आधारित होता है। 

आर्टीरियल ब्लड गैस (ABG) परीक्षण 

ABG अधिक सटीक माना जाता है और इसमें आमतौर पर कलाई की धमनी (radial artery) से रक्त लिया जाता है। यह परीक्षण ऑक्सीजन के साथ-साथ कार्बन-डाइऑक्साइड (PaCO₂) और रक्त का pH भी मापता है, जिससे श्वसन कार्य और अम्ल-क्षारीय संतुलन का विस्तृत आंकलन मिलता है। क्लिनिक रूप से ऑक्सीजन और गैस विनिमय का सर्वश्रेष्ठ मानक यही परीक्षण है। 

 
आयु के अनुसार सामान्य ऑक्सीजन स्तर 

आम तौर पर 95%–100% को सामान्य माना जाता है, परन्तु आयु के साथ थोड़े-बहुत अंतर हो सकते हैं: 

  • नवजात और शिशु: जन्म के बाद शिशुओं में थोड़ी-सी कमी देखी जा सकती है - सामान्य रेंज लगभग 90%–95% होती है। प्रीटर्म (समय से पहले जन्म) शिशुओं में विशिष्ट चिकित्सकीय निर्देशों के तहत 88%–92% तक स्वीकार्य माना जा सकता है।
  • बच्चे: जैसे-जैसे श्वसन प्रणाली विकसित होती है, बच्चों के स्तर वयस्कों के समान हो जाते हैं — सामान्यतः 95% या अधिक।
  • वयस्क: स्वस्थ वयस्कों में सामान्य SpO₂ स्तर 95% से 100% के बीच होता है। अगर यह लगातार 95% से कम आए, तो यह ऑक्सिजन की कमी का संकेत हो सकता है। 90% से नीचे होना हाइपोक्सिमिया माना जाता है और तुरंत चिकित्सा की ज़रूरत होती है।
  • वरिष्ठ नागरिक: उम्र-संबंधी फेफड़ों की लचक में थोड़ी कमी के कारण वृद्ध लोगों में औसतन ऑक्सीजन संतृप्ति सीमा हल्की-सी निचली तरफ हो सकती है (उदा. 95%–97%)। फिर भी यदि लगातार कम माप या अचानक गिरावट हो तो तात्कालिक चिकित्सा आवश्यक है। 
     

निम्न रक्त ऑक्सीजन के लक्षण 

हाइपोक्सिमिया (रक्त में ऑक्सीजन की कमी) के लक्षण इसकी तीव्रता के अनुसार बदल सकते हैं- 

  • सिरदर्द — मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी के कारण।
  • सांस फूलना (डाइसप्निया) — आराम करते समय भी ठीक से साँस न आना
  • चक्कर या हल्का महसूस होना — मस्तिष्क में कमी के कारण।
  • खांसी — विशेषकर यदि कोई श्वसन संक्रमण हो।
  • सांस में सीटी जैसा स्वर (वीज़िंग) — एयरवे के संकुचन का संकेत।
  • भ्रम या मानसिक स्थिति में परिवर्तन — गंभीर हाइपोक्सी में।
  • तेज दिल की धड़कन (ताचिकार्डिया) — हृदय अधिक काम कर रहा होता है।
  • साइनोसिस/नीला पड़ जाना — त्वचा, होंठ या नाखूनों का नीला-बैंगनी दिखना। यह एक देर से दिखाई देने वाला गंभीर संकेत है और तुरंत चिकित्सा सहायता की आवश्यकता दर्शाता है। 

रक्त में ऑक्सीजन कम होने के कारण 

हाइपोक्सी के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं: 

  • क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) — क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और एम्फिजीमा जैसी स्थितियाँ, जो एयरवे और वायु थैलियों (एविओली) को नुकसान पहुँचाकर गैस विनिमय बाधित कर देती हैं।
  • एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (ARDS) — फेफड़ों में तरल भर जाने से ऑक्सीजन आदान-प्रदान प्रभावित होता है।
  • दमा (अस्थमा) — दमा के अटैक में एयरवे सिकुड़ जाते हैं, जिससे श्वास सीमित हो जाती है।
  • प्न्यूमोथोरैक्स (फेफड़ा धंसना / लंग कॉलैप्स) — प्ल्यूरल स्पेस में हवा भर जाने से फेफड़ा पूरी तरह नहीं फैल पाता।
  • न्यूमोनीया (प्न्यूमोनिया) — एक संक्रमण जिसमें फेफड़ों के एयर सैक में सूजन आ जाती है, जिसके कारण वे तरल या मवाद से भर जाते हैं और फेफड़ों की ऑक्सीजन अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है।
  • एनीमिया (रक्ताल्पता) — हीमोग्लोबिन कम होने पर रक्त की ऑक्सीजन वहन क्षमता घट जाती है।
  • जन्मजात हृदय दोष — कुछ हृदय दोषों में ऑक्सीजेनेटेड और डीऑक्सीजेनेटेड रक्त का मिक्सिंग हो सकती है।
  • हृदय रोग (जैसे कङ्गेस्टिव हार्ट फेलियर) — फेफड़ों में तरल भरने से गैस विनिमय बाधित होता है।
  • पल्मोनरी एम्बोलिज़्म — फेफड़ों की धमनी में रक्त का थक्का लगना; यह जीवन-घातक हो सकता है। 

निम्न ऑक्सीजन सैचुरेशन का उपचार 

निम्न ऑक्सीजन स्तर के उपचार का लक्ष्य — कारण का निदान और उसका उपचार तथा लक्षणों की तात्कालिक राहत प्रदान करना है। 

  • ऑक्सीजन थेरेपी: हाइपोक्सी में तात्कालिक हस्तक्षेप के रूप में सहायक ऑक्सीजन दी जाती है — नेज़ल कैन्युला, फेस मास्क या गंभीर मामलों में मेकेनिकल वेंटिलेशन तक आवश्यक हो सकता है। इसका उदेश्य साँसे में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाकर अंगों तक पर्याप्त ऑक्सीजन पहुँचाना है।
  • दवाइयां: कारण के अनुसार दवाइयां दी जाती हैं — ब्रोंकोडायलेटर्स और कोर्टिकोस्टेरॉयड्स (श्वसन रोगों में), संक्रमण के लिये एंटीबायोटिक्स/एंटीवायरल्स, पल्मोनरी एम्बोलिज़्म में एंटिकॉगुलंट थेरेपी आदि।
  • पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन: दीर्घकालिक श्वसन समस्याओं वाले मरीजों के लिए पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन कार्यक्रम बेहद प्रभावी होते हैं। इन कार्यक्रमों में निगरानी में कराए जाने वाले व्यायाम, शिक्षा तथा विशेष श्वास तकनीकों का समावेश होता है, जिससे फेफड़ों की कार्यक्षमता, मांसपेशियों की ताकत और समग्र जीवन-गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • मूल रोग का प्रबंधन: दीर्घकालिक रणनीति में हृदय, जन्मजात दोष, या अन्य स्पेशलाइज़्ड उपचार (शल्यक्रिया, पुनर्वास) शामिल होते हैं। 

ऑक्सीजन स्तर कैसे बढ़ाएँ — घर पर सहायक उपाय 

गंभीर हाइपोक्सी में चिकित्सीय सहयोग अनिवार्य है, पर कुछ जीवनशैली व व्यवहारिक परिवर्तन सामान्य ऑक्सीजन स्तर को समर्थन दे सकते हैं: 

  • श्वास अभ्यास: डायाफ्रामैटिक (पेट से) श्वास जैसी तकनीकें फेफड़ों की क्षमता और कार्यक्षमता बेहतर करती हैं।
  • हाइड्रेशन: पर्याप्त जल सेवन श्वसन मार्ग को नम रखता है और बलगम को पतला कर आसान सांस लेने में मदद करता है।
  • नियमित शारीरिक गतिविधि: एरोबिक व्यायाम कार्डियो-रैस्पिरेटरी क्षमता को मजबूत करता है।
  • धूम्रपान छोड़ना: धूम्रपान फेफड़ों को नुकसान पहुँचाने वाला प्रमुख कारण है — छोड़ने से सुधार की संभावना सबसे अधिक रहती है।
  • संतुलित पोषण: आयरन-युक्त आहार (लाल मांस, मुर्गी, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, फोर्टिफाइड अनाज) एनीमिया रोकने में मदद कर सकती है।
  • पर्यावरण संबंधी ध्यान: प्रदूषण से बचना और स्वच्छ वायु में समय बिताना लाभप्रद है। 

अंतिम अनुच्छेद सुधार सहित 

आपके खून में ऑक्सीजन का स्तर जानना अच्छे स्वास्थ्य की दिशा में एक ज़रूरी कदम है। अगर आपको साँस की कमी जैसे लक्षण महसूस हो रहे हैं, कोई पुरानी सांस से जुड़ी बीमारी (जैसे COPD या अस्थमा) है, या आप अपने फेफड़ों के काम को बेहतर समझना चाहते हैं, तो जाँच करवाना फायदेमंद है। 

अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में हम पूरी तरह से आधुनिक जांच सुविधाएँ देते हैं, जिनमें पल्स ऑक्सीमेट्री और ABG टेस्ट शामिल हैं। हमारे अनुभवी डॉक्टर और आधुनिक मशीनें सटीक रिपोर्ट और सही सलाह देने में मदद करती हैं। अगर जाँच में कोई गड़बड़ी मिलती है, तो हमारी टीम आपको सही परामर्श, कारण की पहचान और आपकी ज़रूरत के अनुसार उपचार योजना देती है। 

अपने फेफड़ों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। आज ही अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में जाँच या विशेषज्ञ से मिलने के लिए अपॉइंटमेंट लें। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) 

बच्चों और बड़ों में सामान्य ऑक्सीजन स्तर क्या होता है? 

बच्चों और वयस्कों दोनों में SpO₂ का सामान्य स्तर 95% से 100% तक होता है। 
अगर यह 90% से नीचे हो जाए तो यह असामान्य माना जाता है और डॉक्टर की सलाह ज़रूरी होती है। 
70 साल से अधिक उम्र के लोगों में कभी-कभी ऑक्सीजन लेवल थोड़ा कम (लगभग 95%) होना सामान्य हो सकता है। 

बच्चों को कितनी ऑक्सीजन दी जाती है? 

अगर बच्चे को अतिरिक्त ऑक्सीजन की ज़रूरत हो, तो उम्र के अनुसार फ्लो रेट होता है: 

  • नवजात शिशु: 1 LPM (लीटर प्रति मिनट)
  • 2 साल से कम उम्र के बच्चे: 2 LPM
  • 2 साल से बड़े बच्चे: 4 LPM 
     

क्या उम्र के साथ ऑक्सीजन लेवल बदलता है? 

हाँ, उम्र बढ़ने पर फेफड़ों की क्षमता थोड़ी कम होती है, इसलिए ऑक्सीजन लेवल भी थोड़ा कम दिख सकता है। 
लेकिन CO₂ (कार्बन डाइऑक्साइड) का बढ़ना उम्र की वजह से नहीं होता—यह किसी फेफड़ों की बीमारी का संकेत हो सकता है। 

बच्चों में कम ऑक्सीजन लेवल क्या माना जाता है? 

अगर बच्चे में ये लक्षण दिखें, तो ऑक्सीजन लेवल कम हो सकता है: 

  • बहुत जल्दी थक जाना
  • साँस लेने में परेशानी
  • छाती तेज़ी से चलना
  • नाक फूलना
  • साँस लेने के लिए सिर पीछे की ओर झुकाना

अगर बच्चे का ऑक्सीजन लेवल लगातार कम हो रहा है, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना ज़रूरी है। 

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